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Ustad Rashid Khan..Shradhhanjali !

उस्ताद राशिद खान साहब को भावपुर्ण श्रध्दांजली : प्रसाद खापर्डे

मेरे गुरुजी..,उस्ताद राशिद खान साहब को भावपुर्ण श्रध्दांजली और विनम्र नमन, कुछ यादों के साथ। मै कोई लेखक नही , लेकिन उस्तादजी के जाने का दुख इतना है कि उनके साथ बिताए हुए वर्षोंकी सारी यादें उमड़ आई और पहेली बार लिखने का प्रयास कर रहा हूं।

गुरुजी..आपके साथ बीते हुए इतने वर्ष और सुवर्ण क्षण की बाते आपको प्यार करनेवाले श्रोताओ के साथ सांझा करने का समय इतने करीब है इसकी कल्पना कभी नही की थी । सोचा था जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा तो अवश्य कहूंगा आपके बारे में।

९ जनवरी २०२४ सभी संगीतकारोंके लिए और पूरे दुनिया के लिए बहोत ही दुखद दिन साबित हुआ, आपने अंतिम सांस ली हमे दुख के सागर में छोड़कर ..इस सदमे से हम उभर पाएंगे या नहीं पता नही। आपके साथ बिता हुआ एक एक पल याद आता है ।

जब मैं कलकत्ता आया, संगीत रिसर्च अकादिमी में ( SRA ), ग्वालियर घराने के बुजुर्ग उस्ताद अब्दुल रशीद खान साहब के पास मेरी तालीम चल रही थी। इसके पहले कभी आपको देखा नही था, सिर्फ रिकॉर्डिंग सुनी थी और आप दिल में बस गए जैसे हर किसी के दिलो दिमाग पर छा जाते है। सिर्फ आपको एक बार देखने की ईच्छा थी, आपका पुराना घर गाजतला में था और नाकतला का नया घर बन रहा था। आप SRA में हमेशा आते थे , जब भी पता लगता आप आए है मैं आपको मिलने की कोशिश करता लेकिन पता लगता की आप अभी अभी निकल गए है । ऐसे कई दिन बीत गए।

एक बार दोपहर का समय था अचानक मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई, मैने दरवाजा खोला तो देखा आप मेरे सामने थे, आप अपने किसी दोस्त को ढूंढने आए थे ,मैं सिर्फ देखता रह गया। जिनको देखने के लिए मैं बेताब था वह साक्षात मेरे सामने थे, मैं कुछ बोल ही नहीं पाया ।

आपके पास मेरी तालीम शुरु हुई , SRA अकादमी में, अकादीमी मे कम और गुरुजी के घर में ही मैं ज्यादा रहता था, तालीम का कोई वक्त तय नहीं था जब भी आपका मन और समय हो तालीम होती ही थी। कभी रात कभी दिन कभी सुबह, गाते गाते कम बोलना और गाकर अधिक सिखाना यह आपका स्वभाव था।

शागीर्द को गाने की नजर कैसी दी जाएं यह आप भली भाती जानते थे। संगीत रिसर्च अकादमी कलकत्ता का आपका पहेला और आखरी एकमेव शिष्य होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ।

कभी रात १२ बजे मुझे निंद आ रही हो तो ” परसाद या बबुआ ( मेरा नया नामकरण) रात में जागोगे नहीं तो गाना क्या गाओगे” ये उस्तादजी की कही बात आज भी याद आती है।

कभी रातभर उस्तादजी के साथ लुडो खेलना पड़ता था, ४ खिलाड़ी कौन तो उस्तादजी , गुरुमाँ, मैं और एक गुरुजी के बंगले का सिक्यूरिटी गार्ड। खेल में उस्तादजी का पार्टनर बनना मतलब उनकी भरपूर गाली खाने की तैयारी पहले से रखनी पड़ती थी। क्यों की उनको और उनके पार्टनर को कभी भी जो चाहिए वह दान मिलना चाहिए मतलब फांसे पड़ने चाहिए.. यदी नही पड़े तो उनका पार्टनर मनहुस..मतलब मैं 😀

उस्ताद जी तो बहोत बार लूडो में तो सिक्यूरिटी गार्ड के साथ बच्चे जैसा झगड़ा करते थे । सिक्योरिटी गार्ड भी तुर्रम खां, उसे उसके नोकरी की चिंता नही आपसे लड़ रहा है , क्यों की वह भी जानता था की आपका गुस्सा ज्यादा देर नहीं टिकता।

मेरी उस्तादजी से तालीम तो कई प्रकार में होती थी, कभी मुझे सामने बिठाकर , कभी पैर दबाते वक्त, कभी पान या सुपारी काटते वक्त या फिर सफर मे। एक बार पुणे रेल्वे स्टेशन पर मुझे बोले ” परसाद तेरी ऊपर की आवाज ( तार सप्तक) कान में लगती है , थोड़ा ध्यान दे ” मैं समझ गया गुरुजी क्या कहेना चाहते है । कभी बोले ” परसाद, यार तेरा मुखड़ा गीर रहा है” मैं समझ गया की मेरे गाने के मुखड़े में पंच नही आ रहा की जैसा वह आक्रमक होना चाहिए।

SRA के स्टूडियो में मैं ज्यादातर गुरुजी के रिकॉर्डिंग सुनता था , कई बंदिशे याद रखकर या लिखकर गुरुजी के सामने गुनगुनाता, जाहिर है की खानदानी बंदिश सीना बसीना सीखने से ही आती है , अपने आप गुरुजी पूरी बंदिश आराम से सिखाते थे।

सबसे पहले तो आवाज दोष विरहित हो , आकार अच्छी हो, बोल बनाना वो भी मिठास और स्पष्टता के साथ, तीनों सप्तक में आवाज का फोकस,ताकत और लचीला पन, बंदिश का विस्तार लयकारी और तान पलटोंका रियाज ऐसी कई बाते गुरुजी गाते गाते समझाते थे। कई बंदिशे वह सिर्फ अस्थाई गाके छोड़ देते थे , मैं बंदिशों का पहलेसेही भूखा था तो उस्ताद जी के पीछे अंतरा सीखने के लिए उनके पीछे लगा रहता था तो मेरा उन्होंने दूसरा नामकरण किया ” अंतरा प्रसाद” क्यों की किसिका नामकरण वो कैसे करेंगे इसका कोई भरोसा नहीं था । एकबार उस्तादजी के गाने को प्यार करनेवाला राजकमलदा कथिया रंग का कुर्ता पहेनके आया तो उसका नामकरण खैरदा कर दिया क्यों की बंगाली में पान के साथ खानेवाले कत्थे को खैर कहते है।

ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का डेढ़ महीने का टूर था। गुरुजी, मै, पंडित ज्योति गोहों और पंडित शुभंकर बैनर्जी … टूर आर्गेनाइजर श्री मोहिंदर ढिल्लन जी साथ में रहेते थे , उनकी उमर ७२ साल की थी उनका नामकरण उस्तादजी ने टील्लन जी किया और डेढ़ महीना उनको ओय टील्लन जी ही पुकारते रहे। लेकिन ढिल्लनजी ने उनकी बात का बुरा नही माना। आर्गेनाइजर कितना भी बड़ा हो उस्तादजी परवाह नहीं करते थे क्यो की उनके के गाने की बुलंदी ही ऐसी थी।

हमारे ज्योति दा ने ( पंडित ज्योति गोहों ) कल ही मुझे ये बात बताई कि ऑस्ट्रेलिया से निकलने का आखिरी दिन था ढिल्लन जी फोन पर किसिसे बात कर रहे थे ” अरे ये राशिद खान ने जितना मुझे सताया है उतना मुझे किसी और कलाकार ने नही सताया, लेकिन क्या करू ,ये जब सुर लगाता है तो मैं सबकुछ भूल जाता हुं” ” क्यों की उस्तादजी का गाना तो वश में करने वाला था लेकिन उनके मस्करी में भी एक रुतबा,प्यार और सादगी थी तो कोई बुरा नहीं मानता था। मेरे सामने की बात है मोहिंदर ढिल्लन जी गुरुजी को बोल रहे थे, ” उस्तादजी ये प्रसाद है ना बड़ा अच्छा शागीर्द है आपका, बहोत सेवा करता है आपकी ,इसको कभी मत छोड़िए , इसको जितना ग्यान दे सकते उतना दीजिए, गुरुजी मुस्कुराए , क्यों की मोहिंदर जी मुझे हरवक्त गुरुजी की सेवा करते देखते थे। बाहर देश मे होटल में किसी भी समय खाना उपलब्ध नहीं होता है,गुरुजी को कभी भी रात को भूख लग सकती है ये मैं जानता था इसीलिए उनके खाने का प्रबंध पहले सेही रूम में करके रखता था।

गुरुजी को वॉशिंग मशीन में धुले कपड़े पसंद नही थे तो मैं अपने हाथ से ही उनके कपड़े धोता था फिर भी कोई थकान नहीं क्यो की गुरुजी का प्यार और मेरी सीखने की लालसा काम आई।

गुरुजी ने उनके पहले समय में भी बहोत कष्ट उठाए थे यह सभी बुजुर्ग कलाकार जानते है। ” परसाद मैंने एक एक टन लकड़ी तोड़ी है यार” ये गुरुजी की कही हुई बात मुझे अभितक याद है।

इसीलिए शायद शारीरिक पीड़ा कलाकार के लिए कितनी आवश्यक है यही समझाने का उद्वेश्य गुरुजी का था। नही तो आज के कलाकार बच्चों को एक झाड़ू मारा तो उनके गले में इन्फेक्शन होता है।

स्टेजपर गुरुजी जैसा ही गाना शुरू करते शुरू से ही मुझे गाने का मौका देते थे इसकारण परफॉरमेंस शुरू से आखिर तक कैसा रहे और रागोंका चयन कैसा हो इसकी समझ धीरे धीरे आने लगी थी। गुरुजी के तान का दायरा कितना बड़ा हैं ये तो सभी दुनिया जानती है , लेकिन मुझे भी ” मार तान” कहेके प्रोत्साहित करते थे , इस प्रकार उन्होंने मेरे डर को मेरे दिल से निकाल दिया।

सभी ख्यातनाम गायकोंकी नकल करने में उस्तादजी माहिर थे ये तो सभी लोग जानते है।

मेरे उस्तादजी हसना और हंसाना भली भाती जानते थे , अपने अद्वितीय गाने से श्रोताओं को ऊर्जा भी देते थे और रुलाते भी थे। मैने भी उनको रोते हुए देखा है अपनी माँ और उनके उस्ताद की याद में ।

१९९८ से उस्तादजी के साथ शुरू हुआ मेरा दौर अद्भुत था। जब मैं कलकत्ता में था और जब कही उस्तादजी का प्रोग्राम , मुंबई, दिल्ली, बड़ौदा, पुणे ,आग्रा हो या वाराणसी में होता तो मैं उस्तादजी निकलने के दो दिन पहले ट्रेन से कलकत्ता से निकलता और उस शहर पहुंचता , उस्तादजी प्रोग्राम के दिन पहुंचते थे। शायद मेरी ये ट्रेन की स्लीपर क्लास की यात्रा एक तालीम ही थी।

मुंबई के केम्स कॉर्नर एरिया के छोटे होटल में उस्ताद जी रुकते , उस्तादजी के परम मित्र बकुल भावसार, नितिन शिरोडकर हमेशा साथ रहते, ज्यादातर वक्त बकुलजी के परेल मेटालिका के गेस्ट हाउस में रियाज और हसी मजाक में गुजरता था। दिल्ली दरबार की बिरयानी मैं गुरुजी के लिए ले आता था।

मुंबई के ग्रांट रोड एरिया में विशेषकर किराना घराने के मूर्धन्य पंडित फिरोज दस्तूर जी और पंडित दिनकर कैकिणी इनके घर, बांद्रा में उस्तादजी के मामा पदमविभूषण उस्ताद घुलाम मुस्तफा खान साहब इन बुजुर्ग और दिग्गज कलाकारो के घर में भी मुझे उनके साथ कई बार जाने का अवसर आया। दादर माटुंगा कल्चरल सेंटर की मैफीले तो ऐसी थी की अश्विनी ताई भिड़े, आरती ताई अंकलिकर, और कई मान्यवर कलाकार गुरुजी को सुनने के लिए अवश्य आते थे।

मुंबई के कई निजी मैफिलो में , गजल नवाज तलत अजीज जी, गुलाम अली जी , जगजीत सिंग जी , चित्रा सिंगजी , पंकज उधास जी , हरिहरन जी और बॉलीवुड कलाकार पूनम ढिल्लन और पद्मिनी कोल्हापुरे गुरुजी को सुनने के लिए अवश्य उपस्थित रहते थे।

भारतरत्न पंडित भीमसेनजी के घर में तो उस्तादजी कितनी बार गाए, उस्तादजी गा रहे है और सामने पंडित भीमसेन जी बड़े प्यार से सुन रहे है और फर्माइश भी कर रहे है, पंडित भरत कामत तबला संगत और पंडित अरविंद थत्ते संवादिनी, मै तानपुरा और कंठ संगत, सुनने के लिए पंडित भीमसेनजी और उनका पूरा परिवार, जयंत चटर्जी, बकुल भाई, नितिन शिरोडकर, चंद्रा पै जैसे गिने चुने ही लोग रहते। विदुषी कल्पना ताई भी इस बात की साक्षी है । क्या दिन उस्तादजी ने दिखाए है वाह..

सिलीगुड़ी, जलपाईगुड़ी, बरहमपुर , बिहार का सोनपुर मेला , केरल में कोट्कल, कोल्लम ऐसे छोटे शहरों में गुरुजी के साथ मुझे जाने का अवसर मिला। मुंबई से केरल ट्रेन में बड़े तानपुरे लेकर केरला गए थे , सुधीर नायक और भरत कामत संगत के लिए थे।

एकबार सिलीगुड़ी का प्रोग्राम था , गुरुजी , ज्योतिदा ( प. ज्योती गोहो ) प. शुभंकर बेनर्जी और मैं कॉन्सर्ट के लिए गए, शायद पुलिस प्रशासन का प्रोग्राम था। प्रोग्राम शुरु करने के लिए आयोजक से बहोत देर हो रही थी , क्यो की उद्घाटन करने वाले मिनिस्टर आए ही नही थे । तीन घंटे बीत चुके थे गुरुजी का गुस्सा एकदम फुटा, बोले ” मैं नहीं गाऊंगा , मैं नहीं जानता किसी मिनिस्टर को” फिर आयोजक के समझाने पर स्टेज पर गए , गाना शुरू हुआ मारू बिहाग के साथ , गुरुजी तो हमेशा की तरह गाने में खो गए और श्रोताओं को भी अपने साथ ले गए । रंगमंच से गुरुजी ऐसे हसमुख हो उतरे की जैसे पहले कुछ हुआ ही नही । कोई समस्या और तनाव का गुरुजी के प्रर्दशन पर कभी कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।

नासिक के एक कॉन्सर्ट में गुरुजी का गला काम नहीं कर रहा था , इन्फेक्शन हो गया था, राग बागेश्री प्रारंभ किया , मै सोच रहा था अब गुरुजी क्या करेंगे लेकिन उन्होंने मंद्र सप्तक और मध्य सप्तक में केवल निषाद तक विस्तार कर बागेश्री का ऐसा समा बांधा की किसी को पता ही ना लगे की गला खराब है।

मुझे कहते थे ” बबुआ ,खराब गले में भी मैफिल जमानी पड़ती है।

प. योगेश समशी, प. शुभंकर बेनर्जी, प. आनंदगोपालजी, प . समर सहा, प. भरत कामत, प . विश्वनाथ शिरोडकर, प. तुलसीदासजी बोरकर, प. ज्योति गोहों, प. वालावलकर, उस्ताद मोहम्मद धौलपुरी, प. सुधीर नायक , सारंगी नवाज मुराद अली खान, विनय मिश्रा इन सभी कलाकारो की संगत गुरुजी को बहोत अच्छी लगती थी। गुरुजी कहते थे की गाना बजाना थोड़ा कम हो चलता है लेकिन संगतकार मिलनसार होना चाहिए की उनके साथ दिल मिल जाए और गाना बजाना आसान हो । हम सभी और पुरा संगीत जगत आज अपने आपको भाग्यवान मानते हैं क्यों कि इनसभी पहुंचे हुए कलाकार और संगतकारो के साथ आपने गाए हुए सभी राग आज रिकॉर्डिग के रूप में उपलब्ध है।

गुरुजी की गायकी हर संगतकार के साथ भिन्न और खूबसूरत दिखाई देती थी । यदि गुरुजी की समुद्र की तरह शांत और गंभीर गायकी सुननी हो तो पंडित योगेश समसी जी , भरत कामत जी , विश्वनाथ शिरोडकर जी के साथ, यदि घराने की पारंपारिक गायकी सुननी हो तो पंडित आनंद गोपालजी के साथ , यदि उनके गाने में चमत्कृति सुननी हो तो पंडित शुभंकर बेनर्जी के साथ और वाद्य जैसी तत्कारी और लयकारी की खूबसूरत गायकी पंडित विजय घाटे जी के साथ निखर आती थीं।

वर्तमान में तो गुरुजी ज्यादातर विलंबित, पर मध्यलय की ओर झुकने वाले तीनताल के साथ ज्यादातर गाते रहे। समय के अनुसार एकताल के खयाल को भी तीनताल में वे बड़ी अच्छे ढंग से पेश करते थे।

गुरुजी..आप जिससे भी मिले आपने उसे अपना बना लिया हमारे SRA का सिक्योरिटी गार्ड सुशीलदा बंगाली हिंदी में मुझे बोलता था ” देखो प्रोशाद, वो रोशिद भाई इतना बोडा बोन गोया किंतु होमे नही भुला, कोल तुम भी बोडा बोन जोएगा तो हमको नहीं भूलना ” गुरुजी का गुजर जाना मेरे लिए दुख के पहाड़ जैसा है किंतु जिन जिन कलाकारोंने उनकी संगत कि उनके लिए भी कम दुख की बात नही , गुरुजी के गुजरने के दुख से हमारे भरत कामत भाई मुझसे फोन पर बात करते वक्त फुट फुट कर रोए है , ये था गुरुजी का सभी को अपना बना लेना।

गुरुजी खाना बनाने के शौकीन थे ये तो सर्वश्रृत है, खुद बहोत कम खाते लेकिन दोस्तोंको ज्यादा खाने का आग्रह करते । शायद ही कोई कलाकार ऐसा होगा जिसने गुरुजी के हाथ का पान ना खाया हो । पान उनकी कमजोरी थी , एक किस्सा..

दुबई और मस्कत का टूर था , पान का बैग मेरे पास ही रहता था, ओमान के एयरपोर्ट पर सेक्युरिटी ने पान निकाल कर फेंक दिए , गुरुजी गुस्से से लाल हुए , बोले अब पान नही तो प्रोग्राम भी नही होगा, उनको लगा अब तो पान इंडिया जाने के बाद ही खाना पड़ेगा । आर्गनाइजर भास्कर मित्रा बहोत घबराए हुए थे, कॉन्सर्ट के लिए बहोत देर हो रही थी , मैने गुरुजी के कान में बताया ” गुरुजी पान है, आप चिंता मत करिए, मैने पहले से ही एकसौ पान चेक इन लगेज में डाल दिए थे ” सुनकर गुरुजी एकदम खुश, हम कॉन्सर्ट हॉल पहुंचे सभी श्रोता दो घंटे से बैठे हुए थे और हॉल पूरा भरा हुआ था।

जब गुरुजी को पंडित कुमार गंधर्व सम्मान मिला तो मुझे फ़ोन करके बड़े प्यार से ” परसाद मुझे कुमार गंधर्व अवार्ड मिला है” ऐसे बोले । उनके पद्माभूषण की बात तो कुछ और ही है.. जिस दिन गुरुजी को पद्मभुषण मिलने की वार्ता मुझे मिली मैने गुरुजी का अभिनन्दन करने के लिए मैंने फोन किया, गुरुजी का फोन बीजी था, मैने सोचा अभिनन्दन के बहोत से फोन आ रहे होंगे इसलिए गुरुजी को कल फोन करूंगा, दो मिनट बाद गुरुजीकाही फोन आया , मैनें कहा ” गुरुजी, प्रणाम.. बहोत खुशी हुई गुरुजी ,आपका हार्दिक अभिनन्दन , आप अभी व्यस्त है तो कल बात करेंगे,” तो गुरुजी बोले ” अरे जो मेरा है वो तेराही तो है, तु बात कर” । गुरुजी जैसी ऐसी सादगी हमे कही दिखाई नहीं देगी।

गुरुजी के सरल स्वभाव और सादगी का और एक उदाहरण, गुरुजी मेरे जन्म गांव घाटंजी में , मेरे पुणे और गोवा के घर मे भी आए। नासिक में तो गुरुजी रात के २ बजे आए वो भी मेरी फोर्ड आइकॉन कार खुद दबाके चलाकर, मेरे घर चलने की बिनती को कभी भी मना नहीं किया।

खुदकी बंदिशे बनाना भी गुरुजी का बड़ा शौक रहा, राग ललत, गोरख कल्याण, मेघ इसमें कई सुंदर बंदिशें उन्होंने बनाई है। सोहनी बहार यह राग मेरे गुरुजी की उपज है जिसे श्रीताओ ने बहोत पसंद किया।

१९९८ की बात है, कलकत्ता में गुरुजी की आकाशवाणी की टॉप ग्रेड के ऑडिशन लिए रिकॉर्डिंग थी, ज्योति गोहों जी, आनंदगोपाल बंदोपाध्याय जी और मैं गुरुजी के साथ में थे , गुरुजी रिकॉर्डिंग रूम में बोले ” खुब घूम पास्ची आमी, आमार जोगायटा परसाद गाते पारी तो ” ( मुझे बहोत नींद आ रही है, क्या मेरी जगह प्रसाद गाएगा तो चलेगा क्या ) आखिर गुरुजी कोही गाना पड़ा वो बात अलग है।

पिछले हफ्ते मुझे आकाशवाणी से फोन आया की मुझे टॉप ग्रेड मिला है , यह बात मैने अभी जाहिर नही की क्यों के मैंने सोचा की यह बात सबसे पहले मै मेरे गुरुजी को बताऊं , लेकिन उसके पहले ही दुख का सैलाब आन पड़ा।

गुरुजी.. आपने हमे छोड़कर जाना निश्चित किया और चले गए एक जबरदस्त छाप छोड़कर, इतिहास बनाकर..

गुरुजी मुझे विश्वास है आप जहा भी होंगे मुझे नित्य आशीर्वाद ही देंगे, जब भी मैं सुर लगाऊंगा आप कोही वहा पाऊंगा। आप जितनी बार जन्म लेंगे उतनी बार आपका शागिर्द और सेवक बनना चाहता हुं।

मेरा छोटा भाई अरमान, मेरी बहने सुहा ,शावना और मेरे सभी गुरु भाईयोंको आपका आशीर्वाद सदैव प्राप्त हो। क्यों की आपने जो जिम्मेदारी दी है वो आपके आशीर्वाद के बिना हम निभा नही पाएंगे।

हम सब, मेरी गुरुमाँ और पूरे परिवार को इस दुख से उभरने की शक्ति ईश्वर हमे दे ।

विनम्र श्रद्धांजलि के साथ

प्रसाद खापर्डे 🙏


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