राष्ट्रहित का गला घोंटकर,
छेद न करना थाली में…
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में !
देश के धन को देश में रखना,
नहीं बहाना नाली में..
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में !
बने जो अपनी मिट्टी से,
वो दिये बिकें बाज़ारों में…
छुपी है वैज्ञानिकता अपने,
सभी तीज़–त्यौहारों में !
चायनिज़ झालर से आकर्षित,
कीट–पतंगे आते हैं…
जबकि दीये में जलकर,
बरसाती कीड़े मर जाते हैं !
कार्तिक दीप–दान से बदले,
पितृ–दोष खुशहाली में…
मिट्टी वाले दीये जलाना…
अबकी बार दीवाली में !
मिट्टी वाले दीये जलाना…
अबकी बार दीवाली में !
कार्तिक की अमावस वाली,
रात न अबकी काली हो…
दीये बनाने वालों की भी,
खुशियों भरी दीवाली हो !
अपने देश का पैसा जाये,
अपने भाई की झोली में…
गया जो दुश्मन देश में पैसा,
लगेगा रायफ़ल गोली में !
देश की सीमा रहे सुरक्षित,
चूक न हो रखवाली में…
मिट्टी वाले दीये जलाना…
अबकी बार दीवाली में !
मिट्टी वाले दीये जलाना..
अबकी बार दीवाली में !
(स्रोत व्हाट्सअप )

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